चैतन्य एकची व्याप्त सर्वत्र

चैतन्य एकची व्याप्त सर्वत्र 
बाह्यभेद जरी भासे 

ईश्वर एकची व्यक्त सर्वत्र 
नामभिन्न जरी भासे
 
चैतन्य हेचि जींवन  सर्वत्र 
रूप बाह्य जरी भासे 

चैतन्य हेचि पूजन केवळ 
मार्ग भिन्न जरी भासे 

हेचि एक सत्य जीवनी 
तंटा तरीही का भासे
 
प्रेम - चैतन्य, चैतन्य - प्रेम
दिव्यता यातच असे  

दिव्यात भरली ईश्वरे 
या मानव जीवनी 

मानव नसे तू दिव्यं ईश्वर 
घे आता जाणुनी 

हीच खरी चैतन्यपूजा 
आनंदाचा मार्ग न दुजा 


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